Thursday, January 15, 2015

एलोवेरा/घृत कुमारी

एलोवेरा/घृत कुमारी

घृत कुमारी या अलो वेरा, जिसे क्वारगंदल, या ग्वारपाठा के नाम से भी जाना जाता है, एक औषधीय पौधे के रूप में विख्यात है। इसकी उत्पत्ति संभवतः उत्तरी अफ्रीका में हुई है। यह प्रजाति विश्व के अन्य स्थानों पर स्वाभाविक रूप से नहीं पायी जाती पर इसके निकट संबंधी अलो उत्तरी अफ्रीका में पाये जाते हैं। इसे सभी सभ्यताओं ने एक औषधीय पौधे के रूप मे मान्यता दी है और इस प्रजाति के पौधों का इस्तेमाल पहली शताब्दी ईसवी से औषधि के रूप में किया जा रहा है। इसका उल्लेख आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों मे मिलता है। इसके अतिरिक्त इसका उल्लेख नए करार (न्यू टेस्टामेंट) में किया है लेकिन, यह स्पष्ट नहीं है कि बाइबल में वर्णित अलो और अलो वेरा मे कोई संबंध है।
घृत कुमारी के अर्क का प्रयोग बड़े स्तर पर सौंदर्य प्रसाधन और वैकल्पिक औषधि उद्योग जैसे चिरयौवनकारी (त्वचा को युवा रखने वाली क्रीम), आरोग्यी या सुखदायक के रूप में प्रयोग किया जाता है, लेकिन घृत कुमारी के औषधीय प्रयोजनों के प्रभावों की पुष्टि के लिये बहुत कम ही वैज्ञानिक साक्ष्य मौजूद है और अक्सर एक अध्ययन दूसरे अध्ययन की काट करता प्रतीत होता है।इस सबके बावजूद, कुछ प्रारंभिक सबूत है कि घृत कुमारी मधुमेह के इलाज में काफी उपयोगी हो सकता है साथ ही यह मानव रक्त में लिपिड का स्तर काफी घटा देता है। माना जाता है ये सकारात्मक प्रभाव इसमे उपस्थिति मन्नास, एंथ्राक्युईनोनेज़ और लिक्टिन जैसे यौगिकों के कारण होता है। इसके अलावा मानव कल्याण संस्थान के निदेशक और सेवानिवृत्त चिकित्सा अधिकारी डॉ.गंगासिंह चौहान ने काजरी के रिटायर्ड वैज्ञानिक डॉ.ए पी जैन के सहयोग से एलोविरा और मशरूम के कैप्सूल तैयार किए हैं, जो एड्स रोगियों के लिए बहुत लाभदायक हैं। यह रक्त शुद्धि भी करता है।
घृत कुमारी का पौधा बिना तने का या बहुत ही छोटे तने का एक गूदेदार और रसीला पौधा होता है जिसकी लम्बाई ६०-१०० सेंटीमीटर तक होती है. इसका फैलाव नीचे से निकलती शाखाओं द्वारा होता है। इसकी पत्तियां भालाकार, मोटी और मांसल होती हैं जिनका रंग, हरा, हरा-स्लेटी होने के साथ कुछ किस्मों मे पत्ती के ऊपरी और निचली सतह पर सफेद धब्बे होते हैं। पत्ती के किनारों पर की सफेद छोटे दाँतों की एक पंक्ति होती है। गर्मी के मौसम में पीले रंग के फूल उत्पन्न होते हैं।
माना जाता है कि घृत कुमारी मूलत: उत्तरी अफ्रीका का पौधा है और मुख्यत: अल्जीरिया, मोरक्को, ट्यूनीशिया के साथ कैनेरी द्वीप और माडियरा द्वीपों से संबंधित है हालाँकि अब इसे पूरे विश्व मे उगाया जाता है। इस प्रजाति को चीन, भारत, पाकिस्तान और दक्षिणी यूरोप के विभिन्न भागों में सत्रहवीं शताब्दी में लाया गया था। इस प्रजाति को शीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में जैसे ऑस्ट्रेलिया, बारबाडोस, बेलीज़, नाइजीरिया, संयुक्त राज्य अमरीका और पैराग्वे मे भी सफलता पूर्वक उगाया जाता है। विश्व में इसकी २७५ प्रजातियाँ पाई जाती हैं।[5]
कृषि
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घृत कुमारी एक सजावटी पौधे के रूप मे उगी हुयी
आजकल घृत कुमारी की खेती एक बहुत बड़े स्तर पर एक सजावटी पौधे के रूप में की जा रही है। अलो वेरा को आधुनिक उत्पादक इसके औषधीय गुणों के कारण उगा रहे हैं। इसकी सरसता इसे कम वर्षा वाले प्राकृतिक क्षेत्रों में जीवित रहने में सक्षम बनाती है, जिसके चलते यह पठारी और शुष्क क्षेत्रों के किसानों मे बहुत लोकप्रिय है। घृत कुमारी हिमपात और पाले का सामना करने मे असमर्थ होता है। आमतौर पर यह कीटों का प्रतिरोध करने मे सक्षम होता है पर कुछ कीट जैसे मीली बग, पटरी कीट और एफिड कीड़ों के कारण पादप की वृद्धि में गिरावट आ सकती है। गमले मे पौधों के लिये बालुई मिट्टी जिसमे पानी का निकास अच्छा हो तेज खिली धूप की स्थिति आदर्श होती है। आमतौर पर इन पौधो के लिये टैराकोटा के गमले क्योंकि यह छिद्रयुक्त होते हैं और अच्छी गुणवत्ता की खाद की सिफारिश की जाती है। सर्दियों के दौरान घृत कुमारी सुषुप्तावस्था मे पहुँच जाती है और इस दौरान इसे बहुत कम नमी की आवश्यकता होती है। हिम या तुषार संभावित क्षेत्रों में पौधों को अन्दर या पौधाघर (ग्रीनहाउस) मे रखना अच्छा रहता है। सौंदर्य प्रसाधन उद्योग के लिये अलो वेरा जैल की आपूर्ति के लिये घृत कुमारी का बड़े पैमाने पर कृषि उत्पादन ऑस्ट्रेलिया, क्यूबा, डोमिनिक गणराज्य, भारत, जमैका, दक्षिण अफ्रीका और केन्या के साथ संयुक्त राज्य अमरीका मे भी होती है।
मानव उपयोग
घृत कुमारी के सौन्दर्य वर्धक और उपचारात्मक प्रभावों के संबंध मे वैज्ञानिक साक्ष्य बहुत सीमित है और आम तौर पर विरोधाभासी है। इसके बावजूद सौन्दर्य और वैकल्पिक दवा उद्योग इसके चिकित्सीय गुणों का निरंतर दावा करता है। घृत कुमारी का स्वाद बहुत ही कड़वा होता है तथापि इसके जैल का प्रयोग व्यावसायिक रूप में उपलब्ध दही, पेय पदार्थों और कुछ मिठाइयों मे एक घटक के रूप में किया जाता है। माना जाता है कि घृत कुमारी के बीजो से जैव इंधन प्राप्त किया जा सकता है। भेड़ के कृत्रिम गर्भाधान मे वीर्य को पतला करने के लिये घृत कुमारी का प्रयोग होता है। ताजा भोजन के संरक्षक के रूप में, और छोटे खेतों में जल संरक्षण के उपयोग मे भी आता है।
चिकित्सा
चीन, जापान और भारत मे घृत कुमारी का प्रयोग पारंपरिक चिकित्सा मे किया जाता है। व्यापक मान्यता के विपरीत कि घृत कुमारी विषैली नहीं होती, अगर इसको ज्यादा मात्रा मे निगला जाये तो यह हानिकारक हो सकता है। मान्यता है कि घावों के भरने में घृत कुमारी प्रभावी इलाज है पर साक्ष्य सीमित और विरोधाभासी हैं। जलने और घाव पर लगाने के अलावा घृत कुमारी के सेवन से मधुमेह रोगियों की रक्त शर्करा के स्तर में सुधार होता है साथ ही यह उच्च लिपिडेमिक रोगियों के रक्त मे लिपिड का स्तर घटाता है।

एलोवेरा का पौधा घर में तुरंत लगा लेंगे जब जानेंगे ये जबरदस्त गुण

एलोवेरा का उपयोग इसके गुणों के कारण वर्तमान समय में बहुत बढ़ गया है। यह बढिय़ा एंटीबायोटिक और एंटीसेप्टिक के रूप में काम करता है। एलोवेरा को घृतकुमारी व घी ग्वार भी कहा जाता है। एलोवेरा के कई नाम हैं, जैसे संजीवनी बूटी, साइलेंट हीलर, चमत्कारी औषधि, ग्वारपाठा, घृतकुमारी, कुमारी, घी-ग्वार आदि से पुकारा जाता है। कब्ज से लेकर कैंसर तक के मरीजों के लिए एक अत्यंत लाभकारी औषधि है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं ऐसे कुछ प्रयोगों व गुणों के बारे में जिन्हें जानने के बाद आप एलोवेरा का उपयोग जरूर करना चाहेंगे...

आगे की स्लाइड्स में पढ़ें एलोवेरा के खास प्रयोग...
1.
दूर करता है खून की कमी
2.
डायबिटीज कंट्रोल करता है
3.
स्किन प्रॉब्लम्स की बेजोड़ दवा
4.
पेट के रोगों में है रामबाण
5.
बालों को बनाएं चमकदार
1. दूर करता है खून की कमी
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एलोवेरा में 18 धातु, 15 एमिनो एसिड और 12 विटामिन मौजूद होते हैं जो खून की कमी को दूर कर रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढाता है।

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एलोवेरा के कांटेदार पत्तियों को छीलकर रस निकाला जाता है। 3 से 4 चम्मच रस सुबह खाली पेट लेने से दिन-भर शरीर में चुस्ती व स्फूर्ति बनी रहती है।
-ऐलोवेरा शरीर के कोमल तत्वों को नुकसान नहीं पहुंचने देता। जिन तत्वों से बुढापा आता है ऐलोवेरा उन्हें नष्ट कर देता है।
2. डायबिटीज कंट्रोल करता है
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एलोवेरा का जूस पीने से शरीर में शुगर का स्तर उचित रूप से बना रहता है।
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एलोवेरा का ज्यूस बवासीर, डायबिटीज, गर्भाशय के रोग व पेट के विकारों को दूर करता है। एलोवेरा का जूस पीने से त्वचा की खराबी, मुहांसे, रूखी त्वचा, धूप से झुलसी त्वचा, झुर्रियां, चेहरे के दाग धब्बों, काले घेरों को दूर किया जा सकता है। -एलोवेरा का ज्यूस पीने से मच्छर काटने पर फैलने वाले इन्फेक्शन को कम किया जा सकता है।
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एलोवेरा का ज्यूस ब्लड को प्यूरीफाई करता है साथ ही हीमोग्लोबिन की कमी को पूरा करता है। शरीर में वहाईट ब्लड सेल्स की संख्या को बढाता है।
3. स्किन प्रॉब्लम्स की बेजोड़ दवा
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एलोवेरा को एक्ने स्किन क्लींजर के रूप में भी प्रयोग किया जाता है।
इसको लगाने से पिंपल और एक्ने से राहत मिलती है।
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टुकड़ा एलोवेरा लेकर उसे पानी में उबाल लें। इसके बाद उसे मिक्सी में पीस कर उसमें शहद मिला कर अपने चेहरे पर लगाएं।
खास कर पिंपल और एक्ने पर इसे 15 मिनट तक के लिए सूखने दें और फिर हल्के हाथ से ठंडे पानी से धो लें।
4. पेट के रोगों में है रामबाण
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एलोवेरा जूस पेशाब संबन्धी समस्याओं मे काफी अच्छा होता है।
महिलाओं मे लिकोरिया, माहवारी आदि बिमारियों मे लाभदायक है।
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पेट के विकारों से पनपने वाले कई रोगों जैसे मधुमेह आदि के इलाज में भी इसकी उपयोगिता साबित हो चुकी है।
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शरीर में दुर्बलता, अपचन, चक्कर आना, पेट के विकार, हाथ-पांव में जलन या झुनझुनाहट होना मानसिक रूप से अस्वस्थ आदि कई लक्षण का पूर्ण निदान हो सकता है।
5. बालों को बनाएं चमकदार
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आप भी बालों के बहुत अधिक झडऩे, गंजेपन या रूखेपन से परेशान हैं तो ऐलोवरा का उपयोग करें।
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एलोवेरा बालों के लिए संजीवनी के समान काम करता है। एलोवेरा के फायदे बहुत हैं। यह ना सिर्फ आपके बालों को खूबसूरत और चमकदार बनाता है बल्कि बालों की जड़ों को मजबूत करता है और बालों में जान डालने के लिए भी कारगर है।
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बालों को खूबसूरत बनाने के लिए एलोवरा जेल को सिर में लगाएं और आधे घंटे रखने के बाद सिर धो लें या आप एलोवेरा से बने शैम्पू व कंडिशनर का उपयोग भी कर सकते हैं।
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एलोवेरा जेल से बालों में चमक तो आती ही है साथ ही बालों की जड़े मजबूत होती हैं व गंजेपन व बहुत अधिक बाल झडऩे की समस्या भी समाप्त हो जाती है।

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