Wednesday, July 2, 2014

व्यक्तित्व

अनलि चौधरी का साठा सफर

जीवन का फलसफा भी कुछ अजीब ही है। कभी लगता है कि जीवन हमारी मुठ्ठी में उन रेत-कणों की तरह है जो प्रतिपल फिसल रहे हैं। साल-दर-साल हमारी मुठ्ठी खाली होती जा रही है। लेकिन आज लग रहा है कि जीवन कदम-दर-कदम हर एक पड़ाव को पार करते रहने का नाम है। इन्हीं पड़ावों को पार करता हुआ शख़्स अपनी चाही हुई मंजिल तक जा पहुंचता है। एक-एक सीढ़ी चढ़कर पर्वत को लांघता है। आज अनिल चौधरी आप को भी कुछ ऐसा ही लग रहा होगा, साठा होकर। साठ वर्ष जीवन में बहुत मायने रखते हैं। कोई कहता है कि बस अब हम थक गए हैं, दुनिया भी कहती है कि तुम अब चुक गए हो, बस आराम करो। लेकिन कैसा आराम? मुझे तो लग रहा है कि अनिल चौधरी आपके सफर की तो अब सही रूप में शुरूआत हुयी है। अभी तक तो सीढ़ी-दर-सीढ़ी चढ़ते हुए एक खासमखास मंजिल तक पहुंचे हैं आप। वह मंजिल है साठ बरस का पहाड़। जैसे एक पर्वतारोही पर्वत पर जाकर चैन की सांस लेता है और वहाँ से दुनिया को देखने की कोशिश करता है बस वैसे ही आज लग रहा है कि साठ बसंत देख लेने पर अपनी मंजिल तक पहुंच पूरी करके पवर्तासीन हो गये हैं और यहाँ से अब अपने चश्मे से दुनिया को निहार रहे हैं। सारी दुनिया अब स्पष्टतः दिखायी दे रही होगी, नज़र आ रहे होंगे दुनिया के सारे रंग, क्योंकि भांति-भांति के अनुभवों का चश्मा जो है आपके पास। तय की गयी तलहटी में बचपन, युवा और प्रौढ़ावस्था के जो अवशेष पीछे छूट गए हैं, वे दिखायी दे रहे होंगे साफ-साफ, और शायद अब वे पल-पल गुदगुदा भी रहे होंगे।

जैसा आम शख्सियतों के साथ होता है, शायद वैसा ही बचपन खेलते-कूदते, डाँट-फटकार खाते, सपने देखते चुटकी बजाते ही बीत गया होगा। हर तरफ से सुनाई देने लगा होगा कि अब तुम बच्चे नहीं रहे, बड़े हो गए हो। घण्टों-घण्टों सपने देखे होंगे बड़े होने के, कभी नींद नहीं आयी होगी, बस जीवन के सपने ही आँखों में तैरते रहे होंगे।

हम क्या बनेंगे, यह सपने हमारे पास नहीं थे। क्योंकि शायद हमारी पीढ़ी में ऐसे सपने देखने की जिम्मेदारी हमारे माता-पिता की थी। बस मेरी तुच्छ समझ और विश्वास में तो यही संतोष है कि अनिल के माता-पिता ने शिक्षा दिलाने का सपना देखा, बुद्धिमान बनाने का सपना देखा। यदि वे यह सपना नहीं देखते तो अनिल जी भी आज न जाने किस मुकाम पर जा पहुंचते? कौन से पर्वत पर खड़े होते? आज शिक्षा के सहारे ना केवल मजबूती से उम्र के इस पड़ाव पर पैर सीधे किये खड़े हैं अपितु सारे परिवार को भी थामने का साहस इन पैरों में मजबूती से मौजूद है।

हां, पर्वत से झांकते हुए युवावस्थात के फलदार वृक्ष दिखायी दे रहे होंगे। पेड़ के फल कैसे हैं बस इसी से पेड़ की ख्याति होती है। मीठे फल लगे हैं तो दूर-दूर तक लोग कहते हैं कि फलां पेड़ के फल बहुत मीठे हैं। यदि फल मीठे नहीं हैं तो लोग उस तरफ झांकते भी नहीं। फलों से विरल कभी पेड़ की भी अपनी खुशबू होती है, जैसे चन्दन की। ऐसे ही हैं हमारे अनिल चौधरी। ये जिधर भी जाते हैं इनकी खुशबू चारों तरफ फैल जाती है और बरबस ही अपनी ओर खींच लेती है।

साठ वर्ष पार कर लेने पर ठहराव की प्रतीति हो रही होगी, शायद। मन के आनन्द को बाहर निकालकर उससे साक्षात्कार करने की चाहत हो रही होगी। अनुभवों के निचोड़ से जीवन को सींचने का मन हो रहा होगा। खुले आसमान के नीचे, अपने ही बनाए पर्वत पर बैठकर जीवन की पुस्तिका के पृष्ठ उलट-पुलटकर पढ़ने का मन हो रहा होगा। अब तो जीवन स्पष्ट होगा, सभी कुछ स्पष्ट दिख भी रहा होगा। बस इसके आनन्द में उतर जाइए। बहुत कुछ पाया है इस जीवन से। खोया क्या है? लेकिन खोने को कुछ था ही नहीं, इसलिए पाया ही पाया है।

भावी जीवन की सुखमय मंगल कामनाओं के साथ।

- अहिवरन सिंह, 14 जुलाई, 2012

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