सारी रात मिमियानी, पर एक ही बच्चे से बियानी
क्षमा चाहता हूं, क्योंकि मैं लेखक, पत्रकार, बुद्धिजीवी, बुद्धिमान आदि-आदि की जमात से ताल्लुक तो नहीं रखता हूं फिर भी कुछ अपने दिल की बात बयां करने की हिमाकत कर रहा हूं। ‘उनकी’ बत-कही की हकीकत को अपने शब्दों में पेश करने की जुर्रत कर रहा हूं। बयार ही कुछ ऐसी चल रही है, मैं क्या करूँ, मन है कि मानता ही नहीं।
वैसे ए मन तूं है बहुत ही कुत्ती चीज, पता नहीं कहां-कहां तक चला जाता है, आनन-फानन में क्या-क्या कर डालता है, क्या-क्या सोचता है, क्या-क्या कर गुजरने की प्यास पैदा करता है, सोचता है कि सारे जहां में हमारा सानी नहीं, तूं हमेशा इस गफ़लत में रहता है कि जो हम सोच रहे हैं, कर रहे हैं वैसा कोई दूसरा नहीं सोच सकता, कर सकता। वही तो, यह समझता है कि मैं जो सोच रहा हूं, और करने जा रहा हूं वह एक कसौटी है। अरे भई, तूं है किस मुगालते में ? तुझे क्या पता नहीं कि यहां कितने बड़े-बड़े महारथी, शूरमा आए, पर सब धूल चाट गये। किसी की एक न चली। गर चली तो बस ‘उनकी’ अपनी ही। शायद तूं भूल रहा है कि एक बाकया ब्रह्मा जी का दरबार लगा हुआ था, वहां इन्द्र देवता भी मौजूद थे। इन्द्र का मन दरबार की बातों में तो नहीं, लक्ष्मी जी पर फिदा होता जा रहा था, अतः उनके मन में लक्ष्मी जी के साथ क्या कुछ कर गुजरने की मंशा पैदा हुई, ब्रह्मा जी के आगाह करने पर भी जब वे नहीं माने तो उन्हें अपनी मानसिक वृत्ति के कारण ही ब्रह्मा जी के कोप का भाजन बनना पड़ा था और उन्हें श्राप भुगतना पड़ा था। अरे नाराज क्यों होता है, ऐसा मैं नहीं कह रहा, ग्रंथों में लिखा है। यार तुम तो दुर्वासा ऋषि से कम नहीं हो, जिनके कोप मात्र से चिड़िया भस्म हो गयी थी।
चुप्प हो जाओ, बहुत हो गया, कितनी देर से मैं शांति का घूंट पिये जा रहा हूं और तुम हो कि बड़-बड़ाते चले जा रहे हो। समझते क्या हो अपने आप को ? अगर मैं नहीं होता तो तुम्हारी क्या बिसात कि तिल भर भी कुछ कर सकते। सोच सकते। और अपनी सोच और रणनीति को कार्य रूप दे सकते। भला कहो उस ब्रह्मा को जिसने तुममें मुझको भी शामिल कर दिया, अन्यथा तुम तो. . . . । खैर, बहुत हो गया। ऊँ शान्ति। हम आपसी द्वन्द्व में ही उलझ कर रह जाएंगे। और जो मूल बात, तथ्य तथा हकीकत आपके सामने रखना चाहता हूं, उससे भटक जाऊंगा।
यार मजा आ गया। अभी कल ही तो सुना है कि असंगठित क्षेत्र के मजदूरों/गरीबों का कल्याण हो जायेगा। उनका भी बीमा किया जायेगा और किसी भी दुर्घटना की स्थिति में सरकार उन्हें देगी दुर्घटना बीमा रूपी पुरस्कार। अभी कुछ दिन पहले की ही तो बात है जब दिल्ली से उद्योग-धन्धों को प्रदूषण की दुहाई पर बाहर किया गया था हजारों लोगों को किनारे लगा दिया गया। अच्छा हुआ, बहुत गुमान हो गया था उन्हें अपने रोजगार पर। पेट तो भर ही रहा था, कपड़े भी पहनना चाह रहे थे। सो सरकार ने अच्छा किया कि अचानक ही उद्योगों को दिल्ली से बाहर भेज दिया। औकात में आ गये। ठीक हुआ न ! अब दिल्ली प्रदूषण मुक्त ही नहीं, गरीब और मजदूर मुक्त भी हो गयी। मेरी दिल्ली मेरी शान। बात दिल्ली की ही नहीं है, वास्तव में सभी तरह से प्रयास तो हम यही कर रहे हैं कि न रहेगा बांस, न बनेगी बांसुरी। अर्थात् जब गरीब/मजदूर ही नहीं रहेगा तो साली गरीबी कहां बसेगी। अरे लगता है तूं, बिल्कुल बेवकूफ है, ऐसे थोड़े ही विकासशील देशों की जमात में शामिल हो जाएंगे। ऐसा कुछ तो करना ही पड़ेगा, तभी तो हम दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी शक्ति बन सकेंगे।
हां यार ठीक बोला। तूं सच ही तो कह रहा है। पर क्या करूं बात जेहन में नहीं समा रही है। बार-बार शंका उठ रही है कि यह विकास है क्या चीज ? अगर रूक जाए तो आफ़त, और अगर किया जाए तो आफ़त। अगर विकास रूक गया तो फिर हम दुनिया में पिछड़ जाएंगे।
चलो देर से ही भली, अब तो सुध आई है। कुछ कर गुजरने की। विकास बांटने की। और अपने नाकारापन को छुपाने की। कुछ और नहीं तो लोगों को खयाली पुलाव तो परोस कर उनकी क्षुदा तृप्ति तो की ही जा रही है। लगता है कि अब देश में कोई भूखा नहीं सोएगा, मरने की तो बात ही मत कीजिए। हां-हां, और क्या इसीलिए तो गली-गली और कूंचे-कूंचे कुलांचती हुई, आनन-फानन में विकास बांटना चाहती है। और ये जनता है कि बेसुध हो, कुंभकरण की नींद में सोये जा रही है। बार-बार बिगुल बजाने पर जागने-उठने का नाम ही नहीं ले रही है। क्यों नहीं, राम-राज्य जो लाना है। अयोध्या में मंदिर बनाना है। जय श्रीराम बुलवाना है।
अब देखो न बच्चे मिट्टी में खेलते हैं, दुःख, बीमारी में दवा नहीं पाते, लोगों को कीचड़ सा गंदा पानी पीना पड़ता है, बीमार होने पर समय पर दवा नहीं मिलती, सर्दियों में भी फुटपाथों पर सोने को मजबूर है, फिर भी इन्हें बीमारियां नहीं होतीं, अर्थात् सर्दी इन्हें गला नहीं पाती और गर्मी भी इनको उबाल नहीं सकती। बाढ़ और सूखा भी इन्हें तबाह नहीं कर पाती। यह सब क्या है ? है न जय श्रीराम की घुट्टी रूपी करिश्मा। सो यह विकास नहीं तो और क्या है। चारों ओर जय श्रीराम और हर-हर महादेव की तूती जो बोल रही है। यह सब जय श्रीराम के धनुष-बाण और महादेव जी के त्रिशूल का ही प्रभाव है। सो अबकी बारी राम मन्दिर बन जाने दो फिर देखना, राम राज्य जरूर आ जाएगा। दर-दर विकास घूमेगा, आवाज लगाएगा कि भई विकास ले लो। मैं तबाह हूं। मुझे कोई नहीं बूझ रहा है। मैं कहां जाऊं। तुम भी जो गपड़-गपड़ कर रहे हो, यह स्वतंत्रता दी किसने ? सिर्फ हमने। हम शहर-शहर घूम-घूम कर फील करा रहे हैं। हम तो तमाम तरह से बता रहे हैं। चिल्लाते-पुकारते परेशान हुए जा रहे हैं। यह तो जनता है कि बिना किसी सवाल-जवाब के जीती चली जा रही है। फील ही नहीं कर रही है। बहुत जान है रे इस जनता में, जो कि हस्ती मिटती नहीं इसकी। पर हम हूं अच्छी तरह समझता हूं कि यह जनता तो कीड़े-मकोड़ों की तरह है। अपन का तो बस एक ही काम है कि हर हाल में सत्ता हथियाओ और राज करो। यह बहुत ही भोली है। इसे बेवकूफ बनाना बड़ा आसान है।
भैया तुम इतनी लम्बी झाड़े जा रहे हो। एक बात हमरी समझ में नहीं आबत है, सो वो है कि इतनी बारी मौका मिला। पिछले पांच साल तो सत्ता में भी रहे फिर भी राम मंदिर क्यों नहीं बनवा पाए। जो आपके अजेण्डे में प्राथमिकता में था।
अरे घोंचू तुझे पता ही नहीं कि जरूरत पडने पर हम सारे हथकंडे अपना लेते हैं। गुजरात में हिन्दुत्व का कार्ड कितना सफल रहा। राम मंदिर को बनवाना हमारे लिए कोई बड़ी बात नहीं है। अगर हम चाहें तो चुटकी में बनवा डालें। मगर फिर समस्या वही हर पांच साल वाली।
हिन्दुत्व प्रयोगशाला ‘गुजरात’ की सारे देश में शाखाएं जो पौंडानी हैं। क्या करें ! ये विपक्षी/वामपंथी समझते क्यों नहीं कि उनकी तुर्रम की वजह से हम उतना कुछ कर सकने में सफल नहीं हो पा रहे हैं जितनी हमें आशा है। बड़ी मुश्किल है। हम विकास की बात करते हैं, तो ये विनाश का आरोप हम पर मड़ देते हैं। हम गरीबी दूर करने की जुगत लगाते हैं तो ये गरीबों को ही दफा कर देने की शिकायत करते हैं। चारों तरफ हर तरह का विकास है। हां, एक बात और; आधुनिक अंधी के दौर में टिकाऊपन विकास की कोई गारंटी नही।
चलो अबकी बारी अटल बिहारी का नारा नहीं चलाएंगे। मंदिर-मस्जिद की बात नहीं करेंगे। फील गुड और विदेशी मूल ही काफी हैं। ये हमारे तर्कस के रामबाण हैं। फिर भी यदि काम नहीं चला तो हिन्दू कार्ड कब काम आयेगा। अब देखो न सब कहते थे कि गुजरात में हिदुत्व का कार्ड खेलने वाले मोदी की सत्ता में वापसी नहीं हो सकेगी। सबकी ऐसी की तैसी। देखलो प्रत्यक्ष में मोदी फिर से सत्ता में वापस आ गया। हम हूँ न।
अरे भाया मुझे तो इन वामपंथियों की सोच पर तरस आता है। ये सत्ता सुख तो जानते हैं नहीं। बरसाती मेढ़कों की तरह टर्र-टर्र करते रहते हैं। ब्लेम लगाते हैं। विकास को विनाश की संज्ञा देते हैं। अब तुम ही बताओं कि क्या कोई ज्योतिषी या पंडित दक्षिणा के बगैर कुछ करके देता है। सो हम भी तो काम के बदले दाम लेते हैं, उसे ये लोग रिश्वत, भ्रष्टाचार आदि-आदि नामों से पुकारते हैं। और हमारे काम में अडंगा अड़ाते रहते हैं। हम भी अपनी धुन में इनकी एक नहीं सुनते, अपनी तरह से ही विकास में लगे रहते हैं। बंगारू, जूदेव की तरह कोई-कोई छिटक जाते हैं गोल से। अन्यथा हम सब एक ही थाली के चट्टे-बट्टे ठहरे।
अब देखिए न कुछ लोगों की समझ में आने लगा है। सो हमारी जमात में बेधड़क शामिल हो रहे हैं। फिर चाहे खेल जगत, फिल्म जगत, बुद्धिजीवी जगत, मीडिया जगत, उद्योग जगत, राजनीति जगत हो हर तरफ की हस्तियां बीजेपी की ओर लामबन्द हो रही हैं। अब उन्हें इसके अलावा और कोई विकल्प ही नजर नहीं आ रहा है। ऐसा हड़कंप तथाकथित अभिजात्य वर्ग में है। क्यों न हो। सभी को मंत्री/संत्री का ख्वाब जो सताने लगा है।
अरे यार बहुत हो गया; तू तो कुछ ज्यादा ही लम्बी-लम्बी खींच रहा है। तुझे पता नहीं कि देश में पब्लिक किस हाल में ज़िंदगी को धकेल रही है।
क्या तू तो अब भी सुधरने का नाम ही नहीं ले रहा है। भई हमने क्या सबका ठेका ले रखा है। सबको अपनी चिंता करनी है।
- अहिवरन सिंह
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