Tuesday, July 1, 2014



भाभड़ घास की कटान व्यवस्था एवं समस्या;
घाड़ क्षेत्र मज़दूर मोर्चा सहारनपुर द्वारा 13 दिसम्बर, 99 को 0 प्र0 के वन मत्राी को दिये गये ज्ञापन के संदर्भ में

जनपद सहारनपुर में शिवालिक वन प्रभाग की तलहटी में बसे घाड़ क्षेत्रा के 80 गांव और 15000 परिवारों की जीविका का एकमात्रा साधन भाभड़ घास से बान बनाना है। यह सभी परिवार दलित, अति पिछड़े और अल्पसंख्यक समुदाय से सम्बन्धित है। व्यवस्था के तहत वन निगम भाभड़ को कटवा   कर अपने क्षेत्राीय डिपो के ज़रिये 180 रूपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बान मज़दूरों को भाभड़ उपलब्ध करवाता रहा है। लेकिन चालू वर्ष (अक्टूबर 99 से मार्च 2000) के दौरान वन निगम ने भाभड़ कटवा कर उपलब्ध कराने से इन्कार कर दिया। घाड़ क्षेत्रा मज़दूर मोर्चा के प्रतिनिधियों की ओर से    प्रशासनिक एवं वन अधिकारियों के साथ संपर्क करने के बावजूद अनिश्चितता की स्थिति बनी रही और समस्या का जब कोई हल निकलता नज़र नहीं आया तो मोर्चे ने जनता एवं बान मज़दूरों का, सीधे वन में जाकर भाभड़ काटने के लिए आह्नान किया। इतना ही नहीं जनता के इस आंदोलन को असफल करने की दृष्टि से वन निगम के अधिकारियों ने हक़दारी और गै़र हक़दारी के गांवों को आपस में लड़ाने की भी कोशिश की, परन्तु वे इसमें नाकाम रहे।
       सीधे टकराव की स्थिति एवं क्षेत्राीय जनता और बान मज़दूरों की दिक्कतों के मद्देनज़र ज़िला प्रशासन, वन प्रशासन एवं मोर्चा के बीच वार्ताओं का दौर चला, जिसके तहत 17 नवम्बर को सरकारी आदेश सं. 3944/14.2.99-506/87 की सूचना जारी की गयी। इसके आधार पर घाड़ क्षेत्रा मज़दूर मोर्चा ने वन मंत्राी, श्री राजधारी सिंह को एक ज्ञापन (जिसका विवरण बॉक्स में दिया गया है) दिया।
       इसकेे बाद 17 दिसम्बर को प्रशासनिक अधिकारियों, वन निगम और मोर्चा के प्रतिनिधि मण्डल की लखनऊ में एक बैठक हुई थी जिसमें सर्वसम्मति से तय पाया गया कि बान मज़दूर सीधे जंगल से भाभड़ काट कर लायेंगे और उनसे दस रूपये सर बोझ के हिसाब से रवन्ना लिया जायेगा। साथ ही संयुक्त वन प्रबंधन के तहत यह भी तय हुआ था कि वन निगम के अधिकारी एवं संयुक्त वन प्रबन्धन अध्यक्ष खाता खोल कर भाभड़ कटान से प्राप्त राशि को खाते में जमा करायेंगे और हर तीन दिन बाद एकत्रा धनराशि के संबंध में वन मंत्राी को जानकारी देंगे।
   ठीक एक महीने बाद 17 जनवरी, 2000 को प्रतिनिधि मंडल ने इस मुद्दे के तहत वन मंत्राी से मुलाकात की। वन मंत्राी ने बातचीत में बताया कि खाते खोल दिये गये हैं। सिर्फ़ खाते खुलने की बात सुनकर प्रतिनिधि मंडल को काफी हैरानी हुई, क्योंकि बैठक में लिये गये निर्णयों पर बैठक की तिथि के तीन दिन बाद ही कार्यवाही की बात स्वीकार की गयी थी।
       सरकारी और प्रशासनिक प्रक्रिया के कुचक्र के चलते एक महीना बीत जाने के बाद भी बान मज़दूरों से 10 रूपये सर बोझ के हिसाब से रवन्ना वसूलने, सर बोझ से प्राप्त आय को खाते में जमा कराने और हर तीन दिन के अन्तराल पर बान मज़दूरों से  रवन्ने के रूप में प्राप्त धनराशि के संबंध में वन मंत्राी को सूचित करने के बारे में अभी तक कोई कार्यवाही नही की गयी है। इलाके के बान मज़दूर इसे लागू कराने के लिए निरन्तर संघर्षरत हैं।

       संबंधित स्थानीय अधिकारियों का कहना है कि उन्हें इस संबंध में अभी तक कोई लिखित सरकारी आदेश प्राप्त नहीं हुआ है। अतः वे  बैठक में लिये गये निर्णयों पर अमल करने से साफ इन्कार कर रहे हैं। स्थानीय अधिकारियों के उपरोक्त रवैये से यह साफ जाहिर है कि वे अपनी सोची-समझी रणनीति के तहत इस मामले को और ज़्यादा समय तक लटका कर रखना चाहते हैं ताकि वे बान मज़दूरों का अधिक से अधिक शोषण कर सकें।
अहिवरन सिंह; नामाबर जनवरी 2000

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